कुत्ते के काटने पर क्या खाना चाहिए कुत्ते के काटने पर कितने इंजेक्शन लगते हैं कुत्ता काटने पर परहेज कुत्ते के काटने पर क्या नहीं खाना चाहिए कुत्ते के काटने पर क्या क्या नहीं खाना चाहिए कुत्ता काटने पर क्या खाना चाहिए कुत्ता काटने पर क्या नहीं खाना चाहिए कुत्ता काटने का इंजेक्शन प्राइस कुत्ते के काटने पर एंटी रेबीज टीका ही बचाव,कुत्ता काटने पर लापरवाही ना बरतें तुरन्त एन्टी रेबीज वैक्सीन लगाए

कुत्ते के काटने पर एंटी रेबीज टीका ही बचाव

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Anti rabies vaccine


अगर किसी को कुत्ते ने काट लिया है तो 72 घंटे के अंतराल में एंटी रेबीज वैक्सीन का इंजेक्शन अवश्य ही लगवा लेना चाहिए। यह जानकारी नागरिक अस्पताल के एमओ डॉ. अजय ग्रोवर ने दी। उन्होंने बताया कि अगर 72 घंटे के अंतराल में मरीज इंजेक्शन नहीं लगवाता है तो वह रेबीज रोग की चपेट में आ सकता है। ऐसा होने के बाद रेबीज का कोई भी इलाज उपलब्ध नहीं हैं। साथ जंगली जानवर के काटे जाने के बाद मरीज को चाहिए कि अगर घाव अधिक गहरा नहीं हो तो उसको साबुन से कम से कम पंद्रह मिनट तक अवश्य धोएं। इसके बाद बीटाडीन से उसकी ठीक तरह से सफाई करे व घाव को कभी भी ढके नहीं। अगर घाव अधिक गहरा हो तो तुरंत ही चिकित्सक की सलाह से उसकी साफ-सफाई का ध्यान रखे। घरों में पालतू कुत्तों को एंटी रेबीज का टीका अवश्य ही लगवाया जाए। अगर किसी घाव पर गलती से कुत्ते की लार गिर जाती है तो उससे भी रेबीज हो जाता है। उन्होंने बताया कि एक बार मरीज रेबीज की चपेट में आ गया तो उसका कोई ईलाज नहीं हैं। हालांकि उपचार के माध्यम से मरीज को कुछ राहत प्रदान कि जा सकती है। रेबीज रोग 19 वर्षो तक रोगी को अपनी गिरफ्त ले सकता है।

कुत्ता काटने पर लापरवाही ना बरतें तुरन्त एन्टी रेबीज वैक्सीन लगाए
इस विडियो को देखें,एन्टी रैबीज के अभाव में इसका
क्या हाल हो गया हैं ?


कैसे होता है रेबीज :




जानवर जैसे कुत्ता, बंदर, सुअर, चमगादड़ आदि के काटने से जो लार व्यक्ति के खून में मिल जाती है, उससे रेबीज नामक बीमारी होने का खतरा रहता है। रेबीज रोग सीधे रोगी के मानसिक संतुलन को खराब कर देता है। जिससे रोगी का अपने दिमाग पर कोई संतुलन नहीं होता है, किसी भी चीज को देख कर भड़क सकता है।

रेबीज रोग के लक्षण :


रेबीज रोगी को सबसे अधिक पानी से डर लगता है। क्योंकि जिस किसी को रेबीज हो जाता है, यह रोग दिमाग के साथ-साथ गले को भी अपनी चपेट में ले लेता है। अगर रोगी पानी पीने मात्र की भी सोचता है तो उसके कंठ में जकड़न महसूस होती है। जिससे उसको सबसे अधिक पानी से ही खतरा होता है। रोगी के नाकों, मुहं से लार निकलती है। यहां तक की वह भौंकना भी शुरू कर देता है। रोग की एक ऐसी भी अवस्था होती है कि वह अपने आपको निडर महसूस करता है। रोगी को रोशनी से डर लगता है। रोगी हमेशा शांत व अंधेरे वातावरण में रहना पसंद करता है। रोगी किसी भी बात को लेकर भड़क सकता है।

रेबीज रोग उपचार :



रेबीज होने के बाद कोई भी इलाज संभव नहीं है। हालांकि इसकी रोकथाम के लिए अभी रिसर्च बेशक चल रहे हो, लेकिन अभी तक इसका कोई उपचार नहीं है। फिर भी रेबीज की रोकथाम के लिए अस्पतालों में किसी भी जंगली जानवर के काटे जाने के 72 घंटे तक घाव की सफाई कर उस पर बीटाडीन लगाई जाती है, ताकि घाव को फैलने से रोका जा सके। जंगली जानवर के काटे जाने के बाद एंटी रेबीज वैक्सीन के इंजेक्शन लगाए जाते है। जिनको नियमानुसार पहला इंजेक्शन 72 के अंदर, दूसरा तीन दिन बाद, तीसरा सात दिन बाद, चौथा 14 दिन बाद व पांचवा 28 दिन के बाद लगाया जाता है, लेकिन अब पांचवा इंजेक्शन चिकित्सक की सलाह से ही लगाया जाता है।

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कुत्ते के काटे जाने के बाद अकसर देखा जाता है कि गांवों के मरीज 72 घंटे के बाद आते हैं। घाव पर पिसी हुई लाल मिर्च लगाकर आते हैं जिससे ठीक होने का खतरा कम व घाव में इंफेक्शन होना खतरा अधिक होता है। कुत्ते या अन्य किसी जानवर के काटे जाने के बाद 72 घंटे के अंदर एंटी रेबीज वैक्सीन का इंजेक्शन अवश्य ही लगवाए। तुरंत चिकित्सक की सलाह लेना चाहिए।

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तुरन्त एन्टी रेबीज वैक्सीन लगाए


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